जवान मौसी की चूत दोबारा मिली – Antarvasna – Kamukta

न्यूड इंडियन आंटी सेक्स कहानी में पढ़ें कि कैसे मेरी जवान मौसी ने मुझे अपने घर बुलाया. वो अकेली थी. जाते ही मैंने उन्हें दबोच लिया और नंगी करके उनका जिस्म चाटा.

नमस्कार मित्रो!
मैं आप सभी का पुराना साथी और आप लोगों की ही तरह अन्तर्वासना जैसे बड़े मंच का सच्चा प्रशंसक!

मैं इस मंच से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े उन सभी रचनाकारों का दिल से धन्यवाद करना चाहता हूँ जिनकी वजह से पाठकों को प्रत्येक दिन नये- नये अनुभव पढ़ने को मिलते हैं।

इस साईट पर यह मेरी दूसरी कहानी है।
इससे पूर्व में मेरी एक और कहानी इस साईट पर
मौसी बनी छह दिन की बीवी
के नाम से प्रकाशित हो चुकी है।

इसे पढ़कर बहुत सारे लोगों ने सन्देश भेजे। मैं सभी पाठकों का दिल से धन्यवाद प्रकट करता हूँ। मैंने यथासंभव सभी के संदेशों का जवाब देने की पूर्ण कोशिश की।
खासकर महिलाओं के संदेशों का जवाब पहले दिया गया है क्योंकि दूसरों की तरह मेरी भी चूत में कुछ ज्यादा ही रुचि है … मेरा मतलब औरतों में!

यदि फिर भी किसी के सन्देश का जवाब न दे सका और उन्हें इस बात का बुरा लगा हो तो मैं दिल से उन सभी का क्षमाप्रार्थी हूँ।
आशा करता हूँ कि आप मुझे माफ़ जरूर करेंगे।

जहाँ कुछ संदेशों में लोगों ने कहानी की तारीफ़ की वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों ने मुझसे मेरी मुंह बोली बीवी रूपाली की फोटो, फ़ोन नंबर और कुछ ने तो सीधे चूत दिलवाने का आग्रह किया।
मैं इस सन्दर्भ में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि मैं न तो कोई दलाल हूँ और न ही रूपाली कोई बाजारू रंडी जो उसकी चूत आप को दिला सकूँ।

दोस्तो, न्यूड इंडियन आंटी सेक्स कहानी शुरू करने से पहले मैं आप सभी का सवयं से पुनः परिचय करवा देना चाहता हूँ।

मेरा नाम राहुल वर्मा है। मैं उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 22 साल है। मेरी लम्बाई 5 फुट 10 इंच है। मेरे लंड की लम्बाई 6.5 इंच और मोटाई 2.5 इंच हैं।

मुझे लड़कियों से ज्यादा औरतें पसंद है। राह चलते जब भी किसी कमसिन, सुंदर, सुडौल चूचों वाली कोई औरत को देखता हूँ तो मन करता है कि अभी उसकी चूचियों को हाथों से सहला कर उसके निप्पल को मसल दूँ।

एक बार हमारे किसी रिश्तेदार की शादी में मेरे घर वाले भोपाल गये थे। मैं किसी कारण से शादी में नहीं जा सका और मुझे खाना न ही बनाना आता था।
जिसके लिए मम्मी ने मौसी को मेरे साथ घर पर छोड़ दिया था।

रात को मैंने कैसे मौसी की कामाग्नि को भड़का कर उनकी चूत की खुजली शांत की। फिर बाकी के छः दिन तक उनको अपनी बीवी बना कर उनको हर तरह से नारी होने का सुख दिया।
यह कहानी अतार्वसना पर पांच भाग में प्रकाशित हुई।
जिन पाठकों ने यदि पूर्व की कहानी न पढ़ी हो तो उनसे अनुरोध है कि कृपया वो पहले की कहानी पढ़ लर्न ताकि उनको आगे की कहानी समझने में सुविधा हो।

तो दोस्तो, पेश है एक और नंगी चूत चुदाई की कहानी जिसमे आप पढ़ेगें कि कैसे मैं रूपाली के घर गया था वहां पर मुझे उसकी जेठानी की भी चूत की सेवा करनी पड़ी।
आशा करता हूँ कि आपको ये कहानी भी पसंद आएगी।

लड़कियों और भाभियों से अनुरोध है कि आप सभी अपनी चूत को अपने हाथों से सहला सहला कर गीला करने के लिए तैयार हो जायें।

पिछली बार कहानी के अंत में मौसा जी रूपाली को मेरे घर से ले गये थे।
उसके बाद जब भी रूपाली घर आती तो मैं घर वालों की नजरों से बच कर कभी उसकी चूचियाँ को प्यार से सहला देता; कभी उसकी गोल गोल चिकनी गांड पर चिकोटी काट लेता; तो साली बस मचल उठती या फिर कभी उसको ऊपर वाले कमरे में ले जा कर उसके होंठ पर अपने होंठ रख कर उसके रसीले लबों को चूसने लगता।

जिससे हमारी कामवासना शांत होने की जगह कई गुना बढ़ जाती और हमारे शरीर का रोम रोम पलंग तोड़ संभोग की मांग करने लगता.
लेकिन ऐसा कर पाना हमारे लिए संभव नहीं था।

अब आगे न्यूड इंडियन आंटी सेक्स कहानी:

कुछ दिन बाद मैं शहर में किसी काम से अपनी बाइक पर घूम रहा था।
तभी अचानक से मेरा फ़ोन बजने लगा।

मैं फ़ोन उठाना नहीं चाहता था क्योंकि सड़क पर भीड़ बहुत थी लेकिन लगातार फ़ोन बजने से मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।
इसलिये मैंने गांडी साइड में रोकी और बिना देखे ही फ़ोन उठा लिया- हाँ कौन है?

दूसरी तरफ की आवाज़ सुन कर मेरा सारा गुस्सा प्यार में बदल गया.

रूपाली- क्या हुआ राजा इतना गुस्सा क्यों हो?
मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही! तुम बताओ आज इस सेवक की याद कैसे आ गई?

रूपाली- आपके मौसा जी किसी काम से कल कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहे हैं। तो मैंने न … अपने नीचे के बाल साफ़ कर लिए है। आप भी अपने नीचे के बाल बना कर जल्दी से मेरे पास आ जाओ मैं दीदी से बात कर लेती हूँ।

मैं- आई लव यू रूपाली … सच में जान … तूने दिल खुश कर दिया।
रूपाली- आई लव यू टू!
खनखनाती हुई हंसी हँसते हुए उसने फोन काट दिया।

फिर मैंने भी गांडी को घर की ओर मोड़ दिया और शहर की भीड़ को पीछे छोड़ते हुए मन में मौसी मिलन के ख्वाब लिय गांडी को रफ़्तार देने लगा।

घर पहुँच कर मैंने बाइक अन्दर खड़ी करी और बिना माँ से मिले सीधे अपने कमरे में चला गया क्योंकि मैं उत्सुकतावश योजना को बेकार नहीं करना चाहता था वरना माँ को शक हो जाता।

थोड़ी देर बाद माँ ने मुझे आवाज देकर मुझे बुलाया।
मैं माँ के पास गया तो उन्होंने मुझे बताया- तेरे मौसा जी किसी काम से चार दिनों के लिए आगरा जा रहे हैं, तो तू मौसी के घर चला जा … वहां रूपाली अकेली है। उसे अकेले रहने में डर लगता है।

मैंने जानबूझ कर न जाने का दिखावा करते हुए वहाँ जाने से मना कर दिया.
जबकि मेरा मन अन्दर से कुलाँचे मार मार कर रूपाली की चूची को मुख में भर कर झूल जाने को कर रहा था.

लेकिन माँ ने वहाँ जाने का आदेश दे दिया था।
मैंने माँ से पूछा- कब जाना है?
तो माँ ने बताया- कल सुबह सात बजे तेरे मौसा जी जायेंगे तो तू आठ बजे तक जाना।

मैं अपने कमरे में आया और सबसे पहले रेज़र लेकर बाथरूम में घुस गया और अपनी झांट बनाने लगा क्योंकि जिस तरह मुझे बिना बाल वाली फुद्दियाँ पसंद हैं, ठीक उसी तरह रूपाली को भी चिकना लौड़ा पसंद है।

बाल साफ़ करते हुए मैं रूपाली के बारे में सोचने लगा कि कैसे रूपाली के साथ चार दिन तक क्या क्या करना है।
यही सब सोचते सोचते मैं इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया कि मुझे रूपाली के नाम की मुठ मार कर खुद को शांत करना पड़ा।

बाथरूम से निकल कर मैंने अपना बैग पैक किया और खाना खाने के बाद मैं अपने बेड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।

लेकिन कहते हैं कि जिसे चूत न मिली हो वो इंसान आराम से सो सकता है. लेकिन जिसे चूत मिलने वाली हो, उस इंसान की आँखों से नींद कोसों दूर रहती है।
बस यही हाल कुछ मेरा था।

रूपाली के बारे सोचते हुए घड़ी में ग्यारह बज गए थे लेकिन नींद और मेरा दूर-दूर तक कोई मेल नहीं था।
इसलिए मैंने बाथरूम जाकर एक और बार रूपाली को याद कर के लंड को हिलाया और वापस बेड पर लेट गया।
फिर पता नहीं कितनी देर बाद मुझे नींद आ गयी।

सुबह मेरी आँख देर से खुली घड़ी की तरफ देखा तो आठ बज रहे थे।
मैं जल्दी से नहाकर तैयार हो गया, अपना बैग उठाया, बाइक स्टार्ट की और लहराते झूमते हुए रूपाली के घर की ओर चल पड़ा।

घड़ी में दिन के नौ बज रहे थे और मैं रूपाली के घर के बाहर खड़ा था।

मैंने रूपाली को आवाज दे कर बुलाना चाहा लेकिन उससे पहले रूपाली ने दरवाजा खोल दिया।
मुझसे मिलने के लिये वो भी उतनी ही उत्सुक थी जितना कि मैं!
शायद इसलिये वो दरवाजे के पास खड़ी मेरी राह देख रही थी।

मैंने एक नज़र उसकी ओर देखा।
बदन पर गहरे हरे रंग की साड़ी आँखों में हल्का सा काजल चेहरे पर न मात्र मेकअप होंठों पर नारंगी रंग की लिपस्टिक नाखूनों पर साड़ी के रंग से मेल खाती हुई नेलपोलिश … और सबसे ज्यादा मुख पर पिया मिलन की ख़ुशी … जिससे ये साफ़ जाहिर हो रहा था कि मुझे देख कर वो कितनी खुश है।

हल्की सी मुस्कान के साथ मौसी ने मुझे अंदर आने को आमंत्रित किया।

मैंने गांडी घर के अंदर खड़ी की और बैग को साइड में रख दिया।

जैसे ही रूपाली घर का मेनगेट बंद करके मेरी ओर मुड़ी, मैं उसके दोनों कंधों को अपने हाथों में थाम कर उसके चेहरे को अपलक देखने लगा।

जैसे ही वो कुछ बोलने वाली थी, मैंने आगे झुककर उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों का रसास्वादन करने लगा।
शुरू में वो मेरा साथ नहीं दे रही थी, शायद घर का मेन गेट होने की वजह से वो थोड़ी असहज थी.

लेकिन समय के साथ शरीर के बढ़ते ताप और जोश की वजह से उसे भी अब खुद को रोक पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए उसने भी दुनिया समाज को भूल कर मेरा साथ देना शुरू कर दिया।

अब कभी मैं उसके उपर वाले होंठ को चूसता तो वो मेरे नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से खींचकर चूसने लगती।

कभी मैं उसके होंठ को जोर से चाटने लगता, तो कभी कभी हम दोनों एक दूसरे की जीभ को आपस में लड़ाते रहते और एक दूसरे की जीभ को मुख में भर कर खींचने की कोशिश करते।

अब हमारी लार एक दूसरे के गले को तृप्त कर रही थी।
उसके होंठ पर लगी हुई नारंगी रंग की लिपस्टिक अब लार के सहारे घुल कर हमारे पेट में अमृत की तरह पहुँच रही थी।
जिसकी वजह से उसके होंठों की पुरानी गुलाबी रंगत दिखने लगी थी जिसका मैं शुरू से कायल था।

कई मिनट तक उसके होंठ को चूमने के बाद जब मैंने उसे खुद से अलग किया तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था।
जिसकी वजह से वो मुझसे नजर भी नहीं मिला रही थी।

जैसे ही मैंने उसके माथे को चूमना चाहा तो और शर्मा कर अपने बेडरूम की तरफ भाग गयी।
फिर मैं आगे वाले कमरे में रखे सोफे पर बैठ गया।

जैसे ही मैंने आगे बढ़कर उसके माथे को चूमना चाहा, वैसे ही रूपाली ने मेरा बैग उठाया और शर्मा कर हिरनी की तरह अपनी गोल गोल उठी हुई गांड मटकाते हुए अपने बेडरूम में घुस गई।

मैं बाहर वाले कमरे में पड़े सोफे पर बैठ कर उसके वापस आने की राह देखने लगा।

जब कुछ देर तक रूपाली बाहर नहीं आयी तो मैंने उसको आवाज दी- रूपाली इधर आओ!
रूपाली- जी, अभी आयी!

जब वो कमरे में आयी तो उसके हाथों में पानी का गिलास था जिसे उसने मेरी ओर बढ़ा दिया।

मैं- हर्ष कब तक स्कूल से वापस आयेगा?
रूपाली- हर्ष तो स्कूल गया ही नहीं।

मैं- क्या मतलब घर में तो दिख नहीं रहा क्या पड़ोस में खेलने गया है?
रूपाली- नहीं! जब से उसे पता चला कि उसके पापा आगरा जा रहे हैं तो वो भी साथ में जाने की जिद करने लगा इसलिए ये आज सुबह उसे भी साथ में ले गये।
मैं- यानि कि अब चार दिनों के लिए इस घर में सिर्फ तुम और मैं!
रूपाली- हाँ केवल हम दोनों!

इतना बोल कर उसके मुख पर कातिलाना मुस्कान तैर गयी।

मैं तो घर से चला था गुलाबजामुन का मज़ा लेने के लिए लेकिन यहाँ तो रसमलाई मेरा इंतज़ार कर रही थी।

अब मैं बोला- यार, बहुत भूख लगी है तुमसे मिलने की ख़ुशी के चक्कर में घर से बिना खाए ही चला आया।
रूपाली- बस थोड़ी देर रुको, रसोई का काम खत्म कर करके आपके लिय कुछ बनाती हूँ।

फिर रूपाली रसोई में चली गयी।

कमरे में बैठे बैठे मैं बोर हो रहा था इसलिए मैं उसके बेडरूम में गया अपने कपड़े बदलकर लोवर और टी-शर्ट पहन ली और रसोई में चला गया।

जैसे ही वो मेरे तरफ मुड़ी तो मुझे उसके कामुक शरीर में कुछ परिवर्तन दिखाई दिए।
उसकी चूचियों का आकार अब शायद 34C हो गया था जो किसी किले की मेहराब की तरह उठी हुई ठोस और घमंड से फूली हुई लग रही थी।

कमर की नाप भी अब 30 हो गया था जैसे पेट से अतिरिक्त चर्बी को निकाला गया हो लेकिन उसके चूतड़ों का आकार आज भी वही था 36 … बस फर्क इतना था कि अब दोनों चूतड़ों ने गजब का उठान ले रखा था।

रूपाली सुन्दर आकर्षक और मनमोहिनी तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके इस छरहरे बदन की वजह से उसे पहले से कही ज्यादा कामुक और कातिलाना बना दिया था।

अब जब वो कहीं से भी निकलती होगी तो हर उम्र का पुरुष उसे पाने के ख्वाब जरूर देखता होगा और जो उसे हासिल नहीं कर पता होगा वो उसकी छवि को अपने मन में लाकर मुठ मार के खुश हो जाता होगा।

बाकी मर्दों से मैं खुद को थोड़ा ज्यादा भाग्यशाली मानता हूँ।

अभी मैं अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था कि रूपाली ने मेरे बायें गाल को चूम कर मेरी तन्द्रा भंग की।
रूपाली- कहा खो गये आप?
मैं- कहीं नहीं, बस तुम्हारे बारे में सोच रहा था।

अब मैं रसोई की स्लैब पर बैठ कर रूपाली से बात करने लगा।
मैं- एक बात पूछूं रूपाली?
रूपाली- हां पूछिए।

मैं- मैं तो तुम्हारा नाम ले रहा हूँ लेकिन तुम मेरा नाम नहीं ले रही … ऐसा क्यों!
रूपाली- वो इस लिए क्योंकि पति तो पत्नी का नाम ले सकता है लेकिन पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती। मैं तो आपको अब अपना पति मानती हूँ फिर चाहे आप मुझे अपनी पत्नी मानो या नहीं!

ख़ुशी के वशीभूत होकर मैंने रूपाली के होंठों पर छोटा सा चुम्बन अंकित कर दिया।
रूपाली भी खुश होकर वापस अपने काम में व्यस्त हो गयी।

उसके सर पर बालों का जूड़ा और पीछे आधे से ज्यादा खुला ब्लाउज जिस पर दो उँगलियों की चौड़ाई जितनी कपड़े की पट्टी थी।
जिससे बाकी पीठ पूरी नंगी थी और उसने साड़ी का पल्लू को कमर में खोस रखा था।

ये सब देखकर मैं खुद पर काबू नहीं रख सका और आगे बढ़ कर उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए और धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने के साथ जीभ से चाटकर गीला करने लगा।
कुछ देर तक उसकी गर्दन को चूमने के बाद मैंने अपने सीधे हाथ को ऊपर ले जाकर उसके बालों का जूड़ा खोल दिया।

उसके खुले हुए बालों को मैंने हाथों से आगे करके उसके दायें वक्ष के उपर बिखरा दिया।
कई मिनट तक उसकी गर्दन को चूमने की वजह से रूपाली के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी लेकिन वो अभी कुछ हद तक अपने काम में व्यस्त थी।

तभी मेरी नज़र अलमारी पर रखे शहद के जार पर पड़ी। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर शहद का जार उठा लिया और उसमें से थोड़ा सा शहद अपने हाथों में निकालकर उसकी पीठ पर अच्छे से लगा दिया। मैं अपनी जीभ को नुकीला कर के उसकी नंगी पीठ पर घुमा- घुमा कर शहद चाटने लगा।

अब रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसकी वजह उसके मुंह से वासना की तरंगें स्वर बन कर फूटने लगी थी।

रूपाली- अहह … ह्ह्ह … श … ओह्ह … आपकी इन्ही शैतानियों की तो मैं शुरू से कायल हूँ। कब से ये जिस्म आपके प्यार का भूखा है। आपको याद करके मैं और मेरी चूत दोनों अक्सर गीली हो जाती है।

उसके ब्लाउज का हुक आगे उसकी चूचियों की दरार में कहीं छिपा हुआ था। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर हुक खोलना चाहा लेकिन हुक दिखाई न देने की वजह से मैं सफल न हो सका।
तो मैंने अपनी नजर को रसोई में घुमा कर देखा तो मेरी नजर फ्रिज के उपर रखी कैंची पर पड़ी।
मैंने कैची उठा कर रूपाली के ब्लाउज की कपड़े की पट्टी को बीच से काट दिया। जिसके बाद उसकी चूचियां थोड़ी और बाहर की तरफ निकल आयी।

उसका ब्लाउज अभी भी उसके दोनों कंधों में फंसा हुआ था।
फिर मैंने अपने हाथों से उसके कंधों में फंसी ब्लाउज की बांह को बारी-बारी से उतार कर ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर दिया।

अब उसकी गोरी और नर्म त्वचा वाली पीठ मेरे सामने अल्फ़ नंगी थी। जिस पर मैंने अपने हाथों से थोड़ा सा शहद और चुपड़ दिया।

फिर मैं अपने हाथ आगे लेजा कर उसकी सुंदर सुडौल गोल आकार वाली चूचियों को मसलते हुए अपनी जुबाँ से चाटकर उसकी पीठ अपनी लार से चिकना करने लगा।

मेरी इस तरह लगातार हरकत करती हुई जीभ से रूपाली को खुद को रोक न पायी और रसोई की स्लेब को पकड़ कर किसी मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी।

अब मैंने थोड़ा आगे बढने की सोची.
मैं उसकी कमर में अटके साड़ी के पल्लू को हाथों में लेकर साड़ी को खोलने लगा।
साड़ी उतारने में रूपाली ने मेरी मदद की।

उसके बदन से साड़ी को अलग करने के बाद मैंने साड़ी को रसोई के एक कोने में फेंक दिया।
फिर मैं उसकी नाजुक लचकाती हुई कमर पर गोल गोल जीभ फिराने लगा।

उसकी कमर को चाटते हुए मैंने उसके कमर पर बंधे पेटीकोट के नाड़े को अपने दांतों में दबा कर जैसे ही खीचा वैसे ही पेटीकोट के नाड़े की गांठ खुल गयी और पेटीकोट उसके बदन से चिपके रहने की मिन्नतें करते हुए फर्श पर जा गिरा।
पेटीकोट उसके बदन से अलग होकर उसके टांगों के पास पड़ा हुआ था।

अब मुझे मौसी की गोरी, चिकनी बालरहित दो टाँगें दिखाई दे रही थी।
मोटी मांसल जांघें, पुष्ट पिंडलियाँ और कमर पर विराजमान समान आकार एक जैसी गोलाई, गोरी रंगत वाले दो ठोस चूतड़।
उन चूतड़ों को एक वी आकार वाली पैंटी ने आधा- आधा ढक रखा था।

मैं उसकी पैंटी से बाहर झाकते चूतड़ों को बारी बारी चूमने लगा।
मैंने अपने हाथों में थोड़ा सा शहद ले उनकी टांगों पर लगा दिया।

फिर मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और अपनी जीभ निकाल कर उनकी टांगों को चाटते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा।
कभी उसकी एड़ियों को चाटता तो कभी जांघों के अंदर वाले हिस्से को चूमते हुए उसकी चूत तक पहुँच जाता।

चूत निकलती गर्मी और अंदर से आती खुशबू को नाक में भर कर मैं रोमांचित हो जाता।
दोनों टांगों को बारी- बारी चाटने के बाद मैं उठ खड़ा हुआ।

मैंने फ्रिज खोलकर अंदर से एक बर्फ का टुकड़ा निकाला और उसकी पैंटी को आगे खींचकर चूत के दाने के ऊपर रख कर पैंटी को वापस पहले जैसी अवस्था में कर दिया।

फिर मैंने उसकी उँगलियों को अपनी उँगलियों में फंसा लिया और उसकी पीठ को चूमने लगा।
शुरू में उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन धीरे धीरे चूत की गर्मी बर्फ की ठंडक से टकराने लगी जिसकी वजह से वो अपने होंठ को दांतों से चबाने लगी थी।

मैं कभी उसकी पीठ को जीभ से सहलाता तो कभी उसके कन्धों पर दांत से हल्के से काट देता।

अब रूपाली बर्फ की ठंडक को और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी इसलिये वो अपनी उँगलियों को आजाद कर के चूत को सहलाना चाहती थी लेकिन वो अपनी उँगलियों को मेरी से उँगलियों से न छुड़ा सकी।

कई बार उसने मेरे हाथ को खींच कर चूत के पास ले जाना चाहा लेकिन वो हर प्रयास में असफल रही।

अब रूपाली के बदन की तपिश बहुत बढ़ गई थी जिसके वजह से उसके मुख से काम-सिसकारियां निकलने लगी थी- उफ्फ … अहह … ह्ह्ह्श … आई माँ मर गयी उम्म्म … ओह्ह … ह्म्म्म … हाय … मेरे राजा क्या कर दिया है आपने मेरी चूत के साथ, आप खुद मेरी चूत को सहलाकर इसे झाड़ दो। अब और बर्दाश्त नहीं होता।

लेकिन मैं उसकी बातों को अनसुना कर उसकी पीठ को चूमने में मग्न था।

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